पढ़िए हिमाचल पर लिखी गई यह खुबसूरत कविता जिसका शीर्षक है “यही है मेरा हिमाचल”
हिमनद या फिर हिमानी, बस्ते जहां भोले बर्फानी, नदियां करती कल कल, यही है मेरा हिमाचल, भोले यहाँ के लोग, मीठे उनके बोल, जहां खुशियाँ हैं हरपाल, यही है मेरा हिमाचल, पहाड़ों से वीर यहाँ, इसके जैसा स्वर्ग कहाँ, देव बसते हैं जहां आकर, यही है मेरा हिमाचल, सेब-नाशपती के बाग, या सारसो का साग, हरकुछ मेल यहाँ पर, यही है मेरा हिमाचल, धाम यहाँ की पहचान, और सिड्डु का भी है नाम, दिल मोहते फूल और फल, यही है मेरा हिमाचल, कांगड़ा मंडी या शिमला किन्नौर , सोलन हमीरपुर देश के सिरमौर, तत्पर है सूरज नया उगने को कल, यही है मेरा हिमाचल, ऊना बिलासपुर की अब लोर, चले नई किरण की ओर, कुल्लू चंबा स्पीति लाहुल, यही है मेरा हिमाचल, यही है मेरा हिमाचल!!!! यह कविता ऋषभ शर्मा द्वारा लिखी गई है। साथ ही इस कविता में उपस्थित चित्र भी उन्होंने ही उपलब्ध कराए हैं। हमें उम्मीद है कि आपको यह कविता पसंद आई होगी।
कांगड़ा जिले के इतिहास तथा वर्तमान पर एक नजर
कांगड़ा जिले का मुख्यालय धर्मशाला है। जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई 1597 मीटर है। इसका क्षेत्रफल 5739 वर्ग किलोमीटर है। जनसंख्या के हिसाब से कांगड़ा हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है| कांगड़ा जिले के कुछ आंकड़े: जनसंख्या 15,07,223 लिंग अनुपात 1013 जनसंख्या घनत्व 263 साक्षरता दर 86% कांगड़ा का इतिहास कांगड़ा को पुराने समय मे त्रिगर्त नाम से जाना जाता था। यह हिमाचल की सबसे पुरानी रियासत थी जिसकी राजधानी नगरकोट थी। त्रिगर्त रियासत की स्थापना सुशर्माचंद्र ने की थी। सुशर्माचंद्र ने ही नगरकोट किले का निर्माण करवाया था। त्रिगर्त रियासत पर काफी आक्रमण भी हुए जो इस प्रकार है: 1009ई. में महमूद गजनबी ने आक्रमण किया। 1337ई. में मोहम्मद बिन तुगलक ने आक्रमण किया। 1365ई. में फिरोजशाह तुगलक ने आक्रमण किया।1540ई. मे शेरशाह सूरी ने आक्रमण किया और 1620ई. मे जहांगीर ने कांगड़ा के किले पर आक्रमण किया। 1809 में संसारचंद और महाराजा रणजीत सिंह के बीच ज्वालामुखी संधि…