हिमाचल प्रदेश को देवभूमि भी कहा जाता है। ऐसा
इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां पर बहुत सारे देवी देवताओं के मंदिर है। जिनका अपना एक पुराना इतिहास है। यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश अपनी वास्तु कला के लिए भी प्रसिद्ध है। वास्तु कला में हिमाचल प्रदेश को मंदिर की छत के आकार के आधार पर स्तूपाकार, शिखर, गुंबदाकार, पगौड़ा , बंदछत शैली और समतल शैली में बांटा गया है।
1) स्तूपाकार शैली
इस शैली में बने अधिकतर मंदिर शिमला जिले में स्थित है। शिमला के हाटकोटी के राजेश्वरी मंदिर और शिव मंदिर को इस शैली मे बनाया गया है। जुब्बल क्षेत्र में अधिकतर मंदिर की शैली के बने हैं।
2) शिखर शैली
इस शैली से बने मंदिरों की छत का उपरी हिस्सा पर्वत की तरह चोटीनुमा होता है ।कांगड़ा जिले के बहुत से मंदिर इस शैली में बने हैं। कांगड़ा का मशहूर मसरूर रॉक कट मंदिर भी इसी शैली में बना है। इस मंदिर को हिमाचल का एलोरा भी कहा जाता है।
3)गुम्बदाकार शैली
इस प्रकार से बने मंदिरों पर मुगलों और सिक्ख शैली का प्रभाव रहा है। बिलासपुर का नैना देवी मंदिर, कांगड़ा का चिंतपूर्णी मंदिर ज्वालाजी मंदिर और बृजेश्वरी मंदिर इसी शैली से संबंधित है।
4) पगौड़ा शैली
इस शैली में बने मंदिरो मे कुल्लू के हिडिंबा देवी मंदिर और मंडी का पराशर मंदिर प्रसिद्ध है।
5)बंदछत शैली
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बंदछत शैली हिमाचल प्रदेश की सबसे प्राचीनतम शैली है। छतराड़ी के शक्ति देवी मंदिर और भरमौर का लक्षणादेवी मंदिर की शैली में कहा जा सकता है।
6)समतल शैली
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इस शैली में छत समतल और दीवारों पर कांगड़ा शैली के चित्रों का चित्रण किया गया है। नूरपुर का ब्रिज स्वामी मंदिर, स्पीती के ताबो बौद्ध मठ, सुजानपुर टिहरा का नबर्देश्वर मंदिर इसी शैली के हैं। समतल शैली में मुख्य रूप से राम और कृष्ण मंदिर आते हैं।
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