हिमाचल प्रदेश वीर सपूतों की भूमि रहीं हैं। आज भी हिमाचल से भारतीय सीमाओं की रक्षा के लिए और देश पर मर-मिटने के लिए हजारों लोग सेना में भर्ती होते हैं। भारत कई सदियों तक अंग्रेज़ो का गुलाम रहा। आज के दिन जब 1947 में भारत को आजादी मिली तो एक नये दौर की ओर भारत ने कदम रखें। इस आजादी को पाने के लिए हजारों देशवासियों ने अपना-अपना योगदान दिया। हिमाचल प्रदेश का उस समय आधिकारिक तौर पर अस्तित्व नहीं था पर यहां के क्रांतिकारी नेताओं, लेखक, कविओं इत्यादि ने उस दौर में अपनी अलग ही छाप छोड़ी थी। तो आज स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य पर हम उन्हीं कुछ स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानेंगे।
बाबा कांशी राम:
बाबाकांशी राम का जन्म 11 जुलाई 1882 को कांगड़ा जिले के देहरागोपिपुर कस्बे में हुआ था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया था। उन्होंने केवल काले कपड़े पहनने का प्रण लिया था जब तक कि भारत स्वतंत्र नहीं हो जाता। 1937 में पं. नेहरू ने उन्हें पहाड़ी गांधी के खिताब से नवाजा।
भगमल सौहटा:
भगमलसौहटा का जन्म शिमला जिले के धार गांव में 23 सितंबर 1899 को हुआ था। उन्होंने 1922 में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और प्रजामंडल आंदोलन में भाग लिया। बाद में उन्होंने 1939 में धामी आंदोलन का नेतृत्व किया। इन्हीं आंदोलन के लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।
पदम(पद्म) देव:
पदमदेव का जन्म 26 जनवरी 1901 को जिला शिमला के गांव भंनोल में हुआ था। उन्होंने 1930 में असहयोग आंदोलन और सिविल अवज्ञा में(Civil Disobedience) में भाग लिया। वह हिमालय रियासती प्रजा मंडल के संस्थापक सदस्य थे और रीट, गरीबी और अस्पृश्यता(Untouchability) के खिलाफ लड़े थे। 1952 में वह विधानसभा के लिए चुने गए और राज्य के पहले गृह मंत्री बने। 1957 में वह लोकसभा, 1962 में क्षेत्रीय परिषद और फिर 1967 में विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। वह कविराज के नाम से मशहूर थे।

यश पाल:
यशपाल का जन्म 1903 में जिला हमीरपुर के भंपल में हुआ था। अपने कॉलेज के दौरान उन्होंने भगत सिंह और सुखदेव से मुलाकात की और चरमपंथी समूह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (एचएसआरए) में शामिल हो गए। एचएसआरए ने 1929 में लॉर्ड इरविन को ले जाने वाली ट्रेन को उड़ाने की योजना बनाई थी। यशपाल ने उसे बम से विस्फोट किया था। कई नेताओं की गिरफ्तारी के बाद यशपाल ने चंद्रशेखर आजाद को एचएसआरए को फिर से संगठित करने में मदद की। 1932 में उन्हें गिरफ्तार किया गया और वह 6 साल तक जेल में रहे।
वह एक प्रतिभाशाली लेखक थे और प्रसिद्ध किताब ‘सिम्बालोकन’ सहित कई पुस्तकें लिखी थीं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
दौलत राम संखयान:
दौलतराम संखयान 16 दिसंबर 1919 को जिला बिलासपुर में पैदा हुए थे। उन्होंने सक्रिय रूप से प्रजा मंडल आंदोलन में भाग लिया और बाद में बिलासपुर के राजा के विरूद्ध आंदोलन किया। वह कई बार जेल गए थे वह 1957 में कांग्रेस पार्टी के राज्य अध्यक्ष बने और कई वर्षों तक मंत्री रहे।
कृष्णानंद स्वामी:
कृष्णानंदस्वामी का जन्म मंडी जिले के खनाकागली गांव में हुआ था। उन्होंने सक्रिय रूप से 1921-22 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया। 1952 में वह हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए।
लाल चंद प्रार्थी:
लालचंद प्रार्थी का जन्म 1916 में जिले कुल्लू में नग्गर में हुआ था। उन्होंने सामाजिक सेवा शुरू की और सक्रिय रूप से भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। बाद में वह 1952, 1962 और 1967 में राज्य विधानसभा के लिए चुने गए।
मेजर सोमनाथ शर्मा:
मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म जम्मू में 31 जनवरी 1923 को हुआ था। उनके पिता मेजर ए.एन.शर्मा कांगड़ा जिले से संबंध रखते थे। 1942 में उन्हें सेना में कमीशन मिला, 3 नवंबर 1947 को उन्होंने अपना जीवन बलिदान कर दिया कश्मीर में कबाइली के खिलाफ लड़ते हुए। उनके प्रेरणादायक साहस के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत प्रथम परमवीर चक्र दिया।

डॉ. यशवंत सिंह परमार:
डॉ. यशवंत सिंह परमार का जन्म 4 अगस्त 1906 को जिला सिरमौर के चंहालग गांव में हुआ था। उन्होंने लाहौर से कानून की पढ़ाई और लखनऊ से डॉक्टरेट की थी। वह ब्रिटिश शासन के दौरान कई न्यायिक पदों पर बने रहे। 1946 में भारत की विधानसभा के गठन पर उन्होंने हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। बाद में वह हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। वह हिमाचल प्रदेश के संस्थापक के रूप में भी जाने जाते है।
ऐसे अन्य प्रमुख नेता हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया था; शिवानंद रामौल, पूर्णानंद, सत्य देव, सदा राम चंदेल, सत्यानंद स्टोक्स, दौलत राम, ठाकुर हजक सिंह इत्यादि। आज चाहे यह महान हस्तियां हमारे बीच नहीं हैं पर उनके दिए असूल, बलिदान तथा स्वार्थ से ऊपर उठकर देश के लिए मर-मिटने वाले जज्बे को हम कभी भुला नहीं सकते। ऐसे हजारों-लाखों देशप्रेमियों को हमारा नमन है।
जय हिन्द जय भारत
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