चूड़धार पर्वत हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित है। चूड़धार पर्वत समुद्र तल से 11965 फीट(3647 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है । यह पर्वत सिरमौर जिले और बाहय हिमालय(Outer Himalayas) की सबसे ऊंची चोटी है।
सिरमौर ,चौपाल ,शिमला, सोलन उत्तराखंड के कुछ सीमावर्ती इलाकों के लोग इस पर्वत में धार्मिक आस्था रखते हैं। चूड़धार को श्री शिरगुल महाराज का स्थान माना जाता है। यहां शिरगुल महाराज का मंदिर भी स्थित है। शिरगुल महाराज सिरमौर व चौपाल के देवता है।
चूड़धार कैसे पहुंचा जाए ?
चूड़धार पर्वत तक पहुंचने के दो रास्ते हैं।
मुख्य रास्ता नौराधार से होकर जाता है तथा यहां से चूड़धार 14 किलोमीटर है। दूसरा रास्ता सराहन चौपाल से होकर गुजरता है। यहां से चूड़धार 6 किलोमीटर है।
मंदिर से जुड़ी मान्यता

Source: @happyysoull
इस मंदिर के बनने के पीछे एक पुराणिक कहानी जुड़ी है। मान्यता है कि एक बार चूरू नाम का शिव भक्त, अपने पुत्र के साथ इस मंदिर में दर्शन के लिए आया था । उसी समय अचानक बड़े-बड़े पत्थरो के बीच से एक बहुत बड़ा सांप बाहर आ गया । चूरु और उसके बेटे को मारने के लिए सांप उनकी तरफ दौड़ा। उन्होंने अपने प्राणों की रक्षा के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव के चमत्कार से विशालकाय पत्थरो का एक हिस्सा उस सांप पर जा गिरा,जिससे वह सांप वही मर गया और चूरु तथा उसके पुत्र के प्राण बच गए। कहा जाता है की उसके बाद से ही यहां का नाम चूड़धार पड़ा और लोगों की श्रद्धा इस मंदिर में और अधिक बढ़ गई और यहां के लिए धार्मिक यात्राएं शुरू हुई। एक बहुत बड़ी चट्टान को चूरु का पत्थर भी कहा जाता है जिससे धार्मिक आस्था जुड़ी है।
यह भी कहा जाता है कि चूड़धार पर्वत के साथ लगते क्षेत्र मे हनुमान जी को संजीवनी बूटी मिली थी। सर्दियों और बरसात के मौसम में यहां जमकर बर्फबारी होती है। यह चोटी वर्ष के ज्यादातर समय बर्फ से ढकी रहती है।
चूड़धार पर्वत का उल्लेख जॉन केय द्वारा पुस्तक, द ग्रेट आर्क में किया गया है, जिसमें इसे ‘द चूर‘ कहा गया है। इस चोटी से ही जॉर्ज एवरेस्ट ने 1834 के आसपास हिमालय पर्वतों के कई खगोलीय आंकड़े जमा किए। उस समय वह भारत के सर्वेक्षक जनरल थे। मालूम हो कि माउंट एवरेस्ट को अपना नाम जॉर्ज एवरेस्ट से ही मिला है।
पर्यटन की संभावनाएं
हर साल गर्मियों के दिनों में चूड़धार की यात्रा शुरू हो जाती है। यह चोटी ट्रैकिंग के लिए बेहद ही उपयुक्त है । परंतु यह चोटी दुर्गम तथा कम प्रचलित होने के कारण बाहरी पर्वतारोहियों के बीच में उतनी महत्वपूर्ण जगह नहीं बना पाई है। धीरे-धीरे बदलाव आना शुरू हो गया है क्योंकि यहां ट्रैकिंग की अपार संभावनाएं हैं।
हमें उम्मीद है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। कृपया इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच शेयर भी करें।
No responses yet