37 किलोमीटर के प्रस्तावित ट्रैक वाला मेट्रो प्रोजेक्ट जिसकी अनुमानित लागत 10,900 करोड़ थी, डीपीआर सर्वे पर 1.5 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद बंद किया जा चुका है।
एक अध्ययन और एक सर्वेक्षण पर 1.5 करोड़ रुपए खर्च करने में 11 साल का समय लगा। महत्वाकांक्षी मेट्रो परियोजना के भाग्य को गृह मंत्री की सलाहकार समिति ने यह कह कर नकार दिया कि यह परियोजना शहर के लिए व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य(feasible) नहीं है।
ट्रिब्यून इंडिया के सूत्रों ने कहा कि 27 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में, जिसमें पंजाब के राज्यपाल और यूटी प्रशासक वीपी सिंह बांंडोर और अन्य सदस्यों ने भाग लिया था ने परियोजना की लंबाई पर विचार-विमर्श किया था। उन्होंने यह निर्णय लिया गया कि चंडीगढ़ के लिए मेट्रो परियोजना वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य नहीं थी।
ट्रिब्यून इंडिया के सूत्रों के मुताबिक, इस मुद्दे पर बैठक में मेट्रो पर विस्तृत चर्चा हुई और संजय टंडन (शहर भाजपा अध्यक्ष) और किरण खेर(संसद सदस्य) एकमत नहीं थे। टंडन ने मेट्रो का समर्थन किया था और वहीं खेर ने कहा कि यह परियोजना संभव नहीं है।
खेर ने कहा कि मेट्रो प्रोजेक्ट से निवासियों को लाभ नहीं होगा और इसलिए वर्तमान की आवश्यकता परिवहन के अन्य तरीकों में सुधार के लिए है। इसके विपरीत, टंडन ने कहा कि उन्होंने मेट्रो परियोजना का समर्थन किया है ताकि आने वाले 20 वर्षों में सड़कों पर यातायात में बढ़ोतरी को ध्यान में रखा जा सके।
परियोजना पर प्रारंभिक काम 2006 शुरू हुआ था। दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) ने 2012 में परियोजना के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की थी। डीपीआर के मुताबिक, भूमि लागत और करों सहित प्रारंभिक परियोजना लागत का अनुमान करीब 10,900 करोड़ रुपये था। शहर के लिए 37 किलोमीटर की मेट्रो ट्रैक प्रस्तावित की गई, जबकि पंजाब के लिए 7.8 किलोमीटर की दूरी तय की गई और पंचकूला (हरियाणा) के लिए 6.41 किलोमीटर की दूरी तय की गई। हरियाणा, पंजाब और यूटी प्रशासन के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर भी हस्ताक्षर किया गया था, लेकिन शहरी विकास मंत्रालय ने इस परियोजना के लिए अपनी मंजूरी नहीं दी। डीपीआर और सर्वेक्षण की तैयारी के लिए लगभग 1.5 करोड़ खर्च करने के बाद, शहरी विकास मंत्रालय ने इसकी व्यवहार्यता पर सवाल उठाए हैं।
हमारा यह मानना है कि चंडीगढ़ शहर जीवन स्तर के मानक के अनुसार भारत में सबसे अच्छे शहरों में से एक है, स्कूलों, अस्पतालों, दुकानों आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता, जो बदले में चंडीगढ़ आने के लिए बहुत से लोगों को आकर्षित करती रही है। यह निश्चित रूप से विकल्प की मांग करता है जब आपको ऐसी बढ़ती हुई आबादी को संभालना हो। मेट्रो जैसी परियोजनाएं, पर्यावरण को बचाने के साथ ही निवासियों के लाभ के उद्देश्य से थी, तो ऐसी परियोजनाओं को निश्चित रूप से योजनाबद्ध तरीके से बनाना चाहिए और एक निश्चित समय सीमा के भीतर कार्यान्वित किया जाना चाहिए।
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एक परियोजना की योजना बनाने में करोड़ों रुपयों को बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं है, जो बाद में केवल कागज पर ही रहें। इस मामले पर आपकी क्या राय है? कॉमेंट बॉक्स में नीचे अपनी राय साझा करें। इसके अलावा, इस समाचार को शेयर भी करें।
स्रोत: ट्रिब्यून इंडिया
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